
कुंजन अपने परिवार के साथ नदी के किनारे बसे गांव में गुजर बसर कर रहा था | परिवार में एक, कुंजन की बूढ़ी माँ ,उसकी पत्नी ,अपने तीन बच्चो के साथ बड़े ही आराम से रह रहे थे |यूँ कही की समय गुजार रहे थे तो बुरा न होगा |
ना परिवार के सपने बड़े थे, ना ही उन्हें किसी और से प्रतिस्पर्धा करने की सूझती थी | कुंजन अपने खेतो में काम करके ,अपने परिवार के लिए उतना अनाज उगा लेता था, की किसी के आगे हाथ फ़ैलाने जरुरत महसूस ना पड़े |
दिन ब दिन इसी तरह साल पे साल निकल गये , पर आज भी उनके परिवार की दशा बंद पड़ी हुई ,सुई के कांटे की तरह ही अटक सी गयी थी |
जैसे तैसे कुंजन ने अपने दो बड़े बच्चो की शादी कर दी | उन सब का कर्जा अब सर पे पड़ गया था |
दोनों पति पत्नी कर्जा उतारने लिए दिन रात मेहनत करते, पर ऐसा लग रहा था जैसे कुछ बदलने वाला ना हो |
इसी बीच बरसो से साथ देने वाली कुंजन की माँ आज हमेशा के लिए साथ छोड़ गयी|
थोड़े दिनों तक वह बिलकुल मायुश होकर बैठा रहता, पर आखिर कब तक!
परिवार भी संभालना था |
इस साल ऐसा लग रहा था की, बारिश कम होगी | बारिश तो कम ही हुई ,साथ ही खेतों में खडी फसल भी बर्बाद हो गयी|
अब कुंदन को अपने परिवार के साथ अपने पशुवो की भी चिंता सताने लगी |
ना परिवार के लिए अनाज हुआ था ना ,पशुऔ के लिए चारा ,जैसे तैसे कुंजन और उसका छोटा बेटा जंगलों में जाकर पेड़ों के सूखे पत्ते समेटकर लाते , अपने पशुऔ को खिलाते इसी तरह से दिन बितत्ते गये|
धीरे धीरे जंगलों में चारा मिलना बंद हो गया ,अब धीरे धीरे भूख और प्यास में तड़प रहे ,पशु के शरीर से उभर रही हड्डियों से साफ़ पता लग रहा था, की वह ज्यादा दिन नहीं जी पाएंगे|
आज पशु खेतों की मिट्टी तक खाते दिख रहे थे ,पानी की अत्यंत कमी होने से कीचड़ वाला पानी पीने को मजबूर होने लग गये |
बेबस कुंजन कुछ नहीं कर पा रहा था | एक दिन अचानक दोनों बैल बारी बारी से जमीन पे बेसूद होकर गिर गए ,दोनों पैर फेंककर मानो अपने प्राणो को बक्श देने की भीख मांग रहे हो और कोई जबरदस्ती उनके प्राण खींच रहा हो|
ये सब कुंजन से देखा नहीं गया ,अचानक उसके आँखों से आँशु बरसने लगे |
जमीन पे बेतहाशा पड़े हुए बैलो की आँखों में भी आंसू साफ़ झलक रहे थे|
कुछ समय संघर्ष के बाद ,अब उनका शरीर स्थिर अवस्था में हो गया |
एक एक करते कुंजन के सभी पशु हड्डी के ढांचे बन बन कर कुंजन का साथ छोड़ने लगे |
अब कुंजन को परिवार की चिंता भी होने लगी | आज घर में खाने का अनाज भी नहीं बच्चा था |पड़ोस से उधार लेने का कोई राश्ता नहीं बचा था|
सरकार द्वारा अकाल राहत काम चलाये गए, जिसमे काम के बदले अन्नाज मिलता था ,जो एक निश्चित समय पे मिलने वाला था|
कुंजन ने जैसे तैसे थोड़े अनाज की व्यवस्था की | जब आटे से बनी रोटियां सिककर आती, एक अलग तरह की दुर्गन्ध मानो पेट की भूख शांत कर देती |
कुंजन का छोटा बेटा भी बुझे मन से रोटी खाने का ऐसा नाटक करता ,जैसे उसे कुछ फर्क ना पड़ता हो|
सब्जी की कमी तो अखरने का नाम ही नहीं लेती थी ,छोटा बेटा डिब्बे में रखे पुराने मूंग के दानो को मिर्ची के साथ बांटकर चटनी बना लेता और बड़े चाव से खाता |
दिन यूँ ही बीतते गए| सब कुछ बदलने लगा था |
आज आकाश में घनघोर बदल ने रुख बदला और जोरदार बारिश ने धरती को सींच दिया|
अच्छी बारिश होने से धीरे धीरे सब ठीक होने लगा, पर उन अकाल के दिनों ने ना मिटने वाली छाप छोड़ दी|
कहानी की सीख -समय न कभी एक जैसा रहा है, न ही कभी रहेगा |अकाल किसी न किसी रूप में आता ही रहेगा |
जिस तरह कुंजन ने अपने पशुऔ को खोया ,आने वाले समय में किसी को खोना ना पड़े | हमें आपातकालीन पैसा, इसी समय के लिए बचाकर रखना है|