माँ की ममता ;करुणा की गाथा

माँ की ममता

कवियत्री ने अपनी कुछ पंक्तियों के माध्यम से ये बताने की कोशिश की है की अनेको तकलीफ झेलते हुए भी ,अपना हर दर्द छिपाकर माँ हंसती रहती है …….माँ होती ही ऐसी है |

माँ

माँ रो देती है ,माँ हंस लेती है ||

न्योछावर ममता को कर देती है |

गाथा अनोखी है ,संसार में तेरी ||

बहते आंशू ,आँखों के पोंछ लेती है |

माँ रो देती है ,माँ हंस लेती है |

भुला सा , बिसरा सा लगता है ||

हर पल ,अपना सा लगता है |

मायूस ,उदास मन को तेरे ,

हर बार पड़ लेती है |

माँ रो देती है , माँ हंस लेती है |

मुश्किल दौर में तेरे ,फिर से साथ खडी रहती है |

अक्षरों की अनपढ़ है ,तो क्या !

मन से अक्षरों को पहचान लेती है |

माँ रो देती है , माँ हंस लेती है ||

माँ परिवार लिखने वाली शक्ति है |

ममता की ,करुणा की भक्ति है |

जन्म  से बेशक तड़पी है, हर पल |

दुःख से तेरे लड़ ,लेती पल पल |

माँ ममता की ऐसी सूरत है |

रो रोकर ,फिर हंस लेती है |

माँ रो देती है ,माँ हंस लेती है |

भूलने की कोशिश भी नहीं छणिक |

गुजरे पल के लम्हों को,

याद करके जी लेती है |

माँ  रो देती है , माँ हंस लेती है|

नींद नहीं आती ,सपनो में खोये ||

लगता है ,जैसे खड़ा तेरा स्वरूप है |

लड़खड़ाते कदमो से देखा तो ,

सब कुछ धूमिल , लगता जैसे तेरा रूप है |

आज भले ही लगता कीमती है ,वक्त तुझे ,

कल तक जो रुकी थी |

हर पल डटी थी |

सहारे में तेरे हर पल खडी थी |

भूल ना जाना अनमोल पल |

हर दर्द सहकर बड़ी हुई |

माँ रो देती है ,माँ हंस लेती है ||

अनसुलझी पहेली को भी ,हर बार जीत लेती है |

माँ ममता की, करुणा की गाथा है |

माँ रो देती है ,माँ हंस लेती है |

-प्रेम

उक्त कविता की पंक्तियों के माध्यम से कवियत्री ने यह बताने की कोशिश की है की इस संसार में माँ का रूप ही सबसे अलग है | माँ की जगह ना कोई ले पाया है ना कभी ले पायेगा |

माँ कभी अगर मुश्किल दौर में रोती भी है तो दुसरे ही पल आँखों के आंशु छिपाकर फिर से हंस लेती है | वह नहीं चाहती की उसके आंशु की वजह से उसकी संतान कमजोर पड़े | अपने बच्चो की खातिर हमेशा ही अपनी ममता को न्योछावर करती रहती है | चाहे जीवन में दौर कैसा भी आ जाये , पर हमेशा अपने बच्चो के साथ ही खडी रहती है | माँ एक एसी शक्ति है जिसे पढ़े लिखे होने की जरूरत नहीं ,वह अपने मन रूपी करुणा से अपने बच्चो को आसानी से पढ़ लेती है |

आज भले ही वह अकेली पड गयी हो ,पर हमेशा ही सपनो में खोये संतान की छवि को देखते रहती है ,कभी कभी तो रात में उसे लगता है जैसे खुद उसकी संतान का रूप खडा है ,पर अगले ही पल ,सब कुछ धूमिल हो जाता है |

कवियत्री यह भी कहना चाहती है की आज भले ही हमारे पास वक्त की कमी हो ,पर हमें निरंतर माँ के लिए समय निकालना ही चाहिए | उसने जो अनमोल समय तेरे लालन पालन में लगाया है ,उसके सामने आज का समय कुछ भी नहीं | वह ममता और करुणा की एसी गाथा है जो रोकर भी फिर हंस लेती है | उसके जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आ जाए, पर आखिर में जीत उसी की होती है ……..उसी की होती है |

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