
समय यूँ ही बीतता जा रहा था तुलसी अपनी बारहवी की पढ़ाई करने के बाद मन ही मन अनंत सपने संजोने लग गयी |अब तुलसी को ट्रैन का सफर करने का वक्त नजदीक था |
एक छोटे से गांव में बारहवी पास करना आसान नही था | उसने अपने समाज में अपना एक नाम बनाया था |
वैसे तो वह एक संघर्ष से भरे परिवार में पली बड़ी, लेकिन कभी भी उसने अपने आप को यह महसूस तक नहीं होने दिया |
निरंतर मेहनत करके अपना तो नाम रोशन किया ही ,साथ ही अपने गांव और परिवार का नाम भी रोशन किया |
अब समय आ गया था | जब उसे अपनी आगे की पढ़ाई को जारी रखने के लिए घर से बाहर परिवार से दूर जाना था |
यह तुलसी के जीवन का पहला अनुभव था, की वह ट्रैन में बैठने वाली थी |
इससे पहले न तो उसने कभी शहर की और रुख किया था, न ही अनुभव को जिया था |
जैसे ही तुलसी को पता चलता है की वह पहली बार ट्रैन में बैठने जा रही है|
उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, आज से पहले तुलसी ने अपने दोस्तों से ही ट्रैन के बारे में सुना था |
उधर तुलसी की माँ बाबूजी बड़े ही मायूंस थे ,की वह अनजान जगह कैसे रहेगी |
आज वो दिन आ गया जब उसे जाना था ,माँ बुझे मन से तुलसी को घर से विदा करती है | पर भेजना भी जरूरी था ,उसका भविष्य जो सवारना था |
तुलसी माँ का आशीर्वाद लेकर अपने बाबूजी के साथ चल देती है |
घर से निकलकर ३ किलीमीटर की पैदल यात्रा कैसे निकल गयी पता ही नहीं चला |
तुलसी मन ही मन सोच रही थी, इतनी बड़ी ट्रैन को कितने सारे लोग मिलकर चलाते होगे और भला लोहे की कुर्सी पे कैसे बैठते होंगे ,छोटी सी पटरी पे ट्रैन इतनी तेज कैसे दौड़ती है |
आज मानो उसके सब सवालों का जवाब मिलने वाला था |
२५ किलोमीटर की दुरी तुलसी ने अपने बाबूजी के साथ टूटी फूटी लड़खड़ाती बस से की ,पर मानो आज वह पुरानी बस नयी लग रही हो |
उसे तो बस जल्द से जल्द ट्रैन के पास पहुंचना था |
जब बस जंगल से गुजर रही थी ,तुलसी ने जंगल से आ रही ठंडी हवाओ को महसूस किया ,मानो उसे एक नयी खुशी का अहसास मिल गया हो |
थोड़ी ही देर में बस शहर में प्रवेश करने वाली थी ,अब तुलसी की खुशी मानो सातो आसमान छू रही हो ,मन ही मन वह प्रफुल्लित हो रही थी |
जैसे ही बस ने शहर में प्रवेश किया बड़ी बड़ी मंजिले ,नयी नयी चीजे ,फलो की बड़ी बड़ी दुकाने देखकर ही चकित हो गयी |
जिन चीजों को वह किताबो में देखती थी, आज अपनी आँखों से जीवंत देख रही थी |
एक पल के लिए तो उसे विस्वास नहीं हो रहा था, पर अगले ही पल वो समय भी आ गया था ,जब बस वाले सहचालक ने एक जोर से आवाज में कहा। … स्टेशन। .. स्टेशन ,
मानो अचानक से तुलसी की नींद खुल गयी हो |
उसके बाबूजी ने कपडे से बने थैले को अपने कंधे पे रखा और तुलसी को नीचे उतरने को कहा |
जैसे ही तुलसी बस से नीचे उत्तरी ,आज खुले आकाश के नीचे अनेको गाड़ियों के होरनो की आवाज सुनाई देने लगी | ऐसा लग रहा था ,मानो आज उसने शांत से गांव का वातावरण हमेशा के लिए छोड़ दिया हो |
बाबूजी आगे आगे चलने लगे| तुलसी भी बाबूजी के साथ साथ अपने कदम मिलाने लगी|
स्टेशन पे पहुंचकर बाबूजी ने ट्रैन का टिकट लिया और ट्रैन के इन्तजार में बैठ गये |
तुलसी वहा से गुजर रही ,बड़ी बड़ी ट्रेनों को टकटकी लगाकर लगी |
मानो कुछ सपने जैसा हो | तुलसी के बाबूजी कागज के लिफाफे में रखकर पास ही की दूकान से पकोडिया लेकर आये जो तुलसी को बहुत पसंद थी |
थोड़ी देर इन्तजार के बाद ट्रैन आ गयी ,अब ऐसा लग लग रहा था ,जैसे वह थोड़ी घभराने लगी |
बाबूजी ने भीड़ में से निकालकर तुलसी को ट्रैन में चढ़ा दिया ,एसा लग रहा था जैसे तुलसी एकदम से सुन्न हो गयी हो , आज से पहले उसने ऐसा नजारा कभी नहीं देखा था|
सब कुछ अलग ही लग रहा था | भीड़ से खचाखच भरे कोच में बाबूजी ने बड़ी मशक्क्त करके बैठने के लिए सीट की व्यवस्था की ,जैसे ही तुलसी को बैठने के लिए सीट मिली ,मानो उसके रुके हुए विचार वापिस से अपनी गति पकड़ने लगे थे और फिर से वो सपनो की दुनिया में खो जाती है |
ट्रैन से बाहर का नजारा बहुत ही अच्छा लग रहा था | ट्रैन में अचानक से धक्का महसूस हुआ, जैसे अब ट्रैन चलने वाली हो |
अब सब लोग अपनी अपनी जगह बैठ गए थे |
एक लम्बे हॉर्न के बाद ट्रैन चलने लगी ,तुलसी को पता नहीं चल रहा था की ट्रैन किस और जा रही है |
जैसे जैसे ट्रैन आगे बड रही थी| तुलसी को अपनी माँ से दूरी का अहसास होने लग गया |
मानो उसके जीवन का हिस्सा उससे छूट रहा हो |
तुलसी ने अपने जीवन में पहला ट्रैन सफर अच्छे से किया |
Pingback: दो सबसे अच्छे दोस्त,अधूरी मदद:एक अफ़सोस - HINDISARJAN