अधूरे सपने -अनसुलझी गुथ्थी |
घेवर की दिनचर्या

घेवर अपने परिवार के साथ बड़े मजे से गाँव में रहकर जीवन यापन कर रहा था | वह अपने बड़े भाई की तरह अपने अधूरे सपने नहीं रखना चाहता था | इसलिए दिन रात मेहनत करने से पीछे नहीं हटता था | उसके तीन बच्चे ,जिसमे एक लड़की और दो लड़के थे | उसके परिवार की हालत पड़ोस में रहने वाले अन्य लोगो से काफी अच्छी थी |
उसे बचपन से ही गाय रखने का बड़ा शौक था | जिसे उसने अपनी आजीविका का साधन भी बनाया हुआ था | खेती करने के साथ साथ वह दूध और घी का व्यापार भी करने लगा |जिससे खेतो से होने वाली आमदनी अलग बच जाती | समय यूँ ही बीतने लगा | उसने अपनी बड़ी बेटी की शादी बड़े ही धूम धाम से की |

बेटी की शादी करने के बाद ,आज मानो वह सुकून से रह रहा हो ,पर अब चिंता उसे ये होने लगी की उसके दोनों लड़के भी सही जगह लग जाये, तो उसका जीवन सफल हो जायेगा |
वह अपने परिवार के लिए सुबह ४ बजे उठकर सब काम करके फ्री हो जाता और खेतो पे चला जाता | उसके लड़के सुबह उठकर स्कूल चले जाते | दोनों पढने में ठीक थे , इसलिए घेवर ने कभी भी अपने बच्चो को पढाई के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा,समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था |
घेवर के लडको की संगत और घेवर के अधूरे सपने
बेशक वह इन बातो के बारे में ज्यादा समझता भी नहीं था | जब भी जरुरत होती ,उनकी जरुरत पुरी कर देता , कभी भी अपने बच्चो को कोई कमी महसूस नहीं होने दी | इसी बीच हुआ यूँ की गाँव के कुछ लड़के शैतानिया करते रहते , दोनों लड़के कब उन लडको की संगत में रहने लगे , पता ही नहीं चला |

धीरे धीरे घेवर को ये बात पता चलने लगी , पर अब तक काफी देर हो चुकी थी | गाँव के दुसरे लड़के अपने अपने फ्यूचर में सेट हो गए थे ,उसे अब चिंता सताने लगी की अगर उसके बेटे अपनी लाइफ में सक्सेस नहीं हुए तो उसका सपना अधूरा का अधूरा रह जाएगा | उसे यह डर भी सताने लगा की उसके सपने ,सपने ही बनकर ना रह जाए
घेवर ने अपने बच्चो को समझाने की काफी कोशिश की , पर कुछ भी बदलने वाला नहीं लग रहा था | धीरे धीरे सब बदलता चला गया | घेवर अपने बच्चो को समझा नहीं पाया | अब घेवर को हर बार ये पछतावा होता है की अगर वह सही समय पे अपने बेटो पे ध्यान दे लेता तो उसका सपना अधूरा ना रहता | अब लग रहा है जैसे घेवर के सपने ,अधूरे सपने ही रह गये |
मोरल -कहानी की सीख यह है की जब घर में लड़के या लडकिया समझदार होने लग जाए, तब उनसे मित्रवत व्यवहार शुरू कर देना चहिये ,उस समय सबसे ज्यादा जरूरत परिवार की ही होती है | अगर समय रहते घेवर ध्यान दे लेता तो, आज वह भी सर उठाकर जी सकता |
असली मायने में इंसान यही चाहता है की उसकी संतान अपनी जिन्दगी में सफल हो जाए ,पर जाने अनजाने में हम ये भी भूल जाते है की हमें भी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटना चाहिए ,अन्यथा समय का कोई भरोशा नहीं |
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