एक शुरुआत :संघर्ष के दिन से सफलता की सुबह तक|

सक्सेस

मेरा नाम कोमल था | में एक मध्यम परिवार से तालुक रखती थी | घर में सबसे बड़ी होने के कारण मेरे कंधे पे जिम्मेदारी मेरी उम्र सी भी ज्यादा थी |
पढ़ाई पूरी करने के लिए मुझे पास ही के रेस्टॉरेंट में वेटर का काम करना पड़ रहा था |सुबह कॉलेज जाती ,शाम को कॉलेज से आकर रेस्टॉरेंट जाती | जिंदगी इसी तरीके से कट रही थी |


पर लाइफ में कुछ नया बदलने जैसा दिख नहीं रहा था | आजकल खेती भी अच्छी नहीं हो रही थी, जिससे घर पे खर्चे के लिए भी मुझे ही पैसे देने पड़ते थे |
धीरे धीरे समय यूँ ही बीतता गया और मेरी कॉलेज की पढाई भी पूरी हो चली थी |अब मुझे अपने आने वाले समय की चिंता भी होने लगी थी क्योंकि परिवार में सबसे ज्यादा उम्मीद मुझी से बनी हुई थी |
धीरे धीरे मुझे भी अपने परिवार के लिए भी कुछ करना था और अपने परिवार में एक नाम करना था |
जीवन यूँही निकलता जा रहा था ,पर मैंने किसी भी क्षण अपने आप को कमजोर महसूस नहीं होने दिया |
समय के साथ में खुद ही हमेशा मेरी ताकत बनती गयी और आने वाले क्षण जैसे अनमोल होने वाले थे |

धीरे धीरे मैंने अपनी पढाई पे ज्यादा ध्यान देना स्टार्ट कर दिया और थोड़े ही समय बाद कुछ नौकरी की भर्ती भी आ गयी ,अभी तक मैंने अपना पार्ट टाइम जॉब नहीं छोड़ा था, ताकि मुझे अपने घर खर्च में दिक्कत का सामना ना करना पड़े |
एग्जाम से कुछ ही दिन पहले मैंने अपने जॉब से छुटटी ले ली ताकि में और जोश के साथ पढाई पे ध्यान दे सकू |
एग्जाम से कुछ घंटे पहले तक मैंने अपनी किताब को अपने से दूर नहीं होने दिया ,देखते ही देखते एग्जाम का दिन कब आ गया पता ही नहीं चला |
अपने आप में कॉन्फिडेंस रखकर मैंने अपना एग्जाम दे दिया |
पेपर तो अच्छा हुआ था, पर कॉम्पिटिन के जमाने में कुछ कहना मुश्किल था |
में पहले की तरह अपनी लाइफ में बीजी हो गई |
रिजल्ट की चिंता जरूर थी ,पर पहला ही एग्जाम था इसलिए ज्यादा डर नहीं लग रहा था |
में उस दिन ड्यूटी पे ही कस्टूमर की टेबल पे आर्डर सर्व करने जा ही रही थी की अचानक मेरे रेस्टॉरेंट मालिक के पास फ़ोन की घंटी बजी |

हमेशा की तरह मैंने उसे सामान्य लिया पर ,जैसे ही कोमल करके आवाज लगाई मानो मेरे पैर रुक से गए हो ,दिल की धड़कन जोरो से धड़कने लगी | थोड़ी कंपकपी के साथ पसीने छूटने लगे पर मैंने हिम्मत करते हुए अपने कस्टूमर का आर्डर डिलीवर किया और जाकर फ़ोन रिसीव किया |

सक्सेस


बात करने पे पता चला की फ़ोन मेरी दोस्त सोजत का था ,थोड़ी जनरल बाते करने के बाद उसने जैसे ही मुझे बताया की में एग्जाम में पास हो गयी | यह सुनकर एक पल के लिए तो मुझे लगा की वह मजाक कर रही है |

पर थोड़ी देर बाद सच्चाई महसूस होने लग गयी ,आज लग रहा था जैसे यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी हो | लग रहा था मानो अब सब कुछ बदल जाएगा | और मैंने आने वाली जिंदगी के नए सपने संजोना स्टार्ट कर दिए | मेरे संघर्ष के दिन अब मन में घूम रहे थे पर इस बात का प्राउड था की मैंने बुरे वक्त में भी अपने आप को संभालकर भी जीत हासिल कर ली। .. जीत हासिल कर ली|

मोरल

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