निर्भय : खुली हवा का पंछी |

हवा

हवा का पंछी

कवियत्री ने निम्न पंक्तियों के माध्यम से ये बताया है की जब तक भय हमारे अन्दर रहता है ,तब तक ही हम अपने आप को कमजोर समझ पाते है ………

हवा

मत कर भूल , टूटकर बिखर जाने की |

जीवन ,सुन्दर फूलो का बगीचा है |

हर बार खिला ,हर बार गिरा है |

वापिस से नया रूप ,हर बार लिया है |

हजारो की भीड़ में फिर से ,

अपने आप को जगह दिया है |

मत हो परेशान ,असफ़लतावो के मंजर से |

जीवन का एक भाग है |

जो कड़ी परीक्षा लेता है |

तू पंछी है, खुली वादियों का

तेज तुफानो से नहीं डरता है |

डर डर कर भी फिर ,

अपने साहस को बटोरता है |

फल की चिंता किये बिना ही ,

आज में ही जीवन जीता है |

साहस भरा है जीवन में ,कूट कूट कर तेरे |

हर बार गिरकर भी, नहीं भिखरता है |

तू पंछी है ,खुली वादियों का ,

तेज तुफानो से भी नहीं डरता है |

…………………………नहीं डरता है |

उक्त कविता में लेखिका ऐसे इंसान को इंगित करते हुए बताना चाहती है जो बिलकुल भी डरा सहमा है ,लेखिका कहती है कि आज जो जीवन मिला है ,उसमे अपने आप को बिखरने नही देना है ,बल्कि अपने आप को इस तरीके से बनाना है ,जिस तरीके से एक बगीचे के अन्दर फुल खिलते है ,सुखकर गिरते है और फिर से एक नये पोधे के रूप में जन्म लेते है | इंसानी जीवन ऐसा है जिसमे वह निडर रहकर ,हजारो की भीड़ में भी अपने आप को जगह दे देता है अर्थात जीवन में आने वाली असफलतावो को एक भाग के रूप में ही लेता है |

साथ ही ऐसे पंछी से तुलना की है जो तेज तूफ़ान आने के बाद भी अपने आप को बिना डरे हुए आकाश में उड़ता हुआ पाता है | भले ही कभी कभी उसे डर का अहसास हुआ हो ,फिर भी वह वापिस से साहस बटोर कर तनिक भी नहीं डरता है | निर्भय जीवन इसी तरीके से जिया जाता है |

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